अपने किचन को हेल्दी रखें

तुमने किचन में मटकी रखी हुई है, इस जमाने में कौन मटकी का पानी पीता है ? भारती हंसते हुए बोली।

हम पीते हैं, हमारे बच्चे पीते हैं । फिर ये तो हेल्दी होता है, तुम्हें पता है मटकी का पानी पीने से कफ नहीं बनता, एसिडिटी नहीं होती। मीता ने भारती को समझाते हुए बोला।

तुमने इतना सुन्दर मॉड्यूलर किचन बनवाया है, उसमें किचन में मटकी रख दी, अच्छी नहीं लग रही। भारती ने अपनी बात में वजन डाला। ना लगे अच्छी, मुझे तो अपनी और परिवार की सेहत देखनी है। फ्रिज का पानी नुकसान ही करता है, और उससे प्यास भी नहीं बुझती, मटकी का पानी प्यास बुझा देता है, मीता ने फिर कहा।

बच्चे तो कतई नहीं पीते होंगे??भारती ने फिर से अपनी बात रखी।

पीते हैं,हम पीते हैं तो हमने बच्चों को भी सिखाया है ।पहले के जमाने में लोग यही पीते थे,स्वस्थ रहते थे ,उन लोगों को पेट की बीमारियां नहीं होती थी,नदी , कुओं का पानी मटकी में भर कर रखते थे,वहीं पीते थे। आज नित नये RO आ रहे हैं ,आज के जमाने में RO. का पानी पीना मजबूरी है ,क्योकि पहले की तरह पानी शुद्ध नहीं रहा , केमिकल और प्लास्टिक से दूषित हो गया है,पर हम उसे सीधे ना पीकर मिट्टी के मटके में भर कर पीयें तो वो और भी गुणी हो जाता है। मटकी का पानी पाचन तंत्र को सही रखता है,पानी के तमाम पोषक तत्व बनायें रखता है । मटकी रखने में शर्म कैसी??? हमारा किचन स्वास्थ्य वर्धक होना चाहिए।।

अच्छा ठीक है ,अब जल्दी से कुछ खिला दें ,भूख लग रही है।

अरे!! ये क्या लोहे की कड़ाही में तूने सब्जी बनाई है ।तू तो अभी तक पुराने जमाने की है,भारती फिर बोली। तुझे कहा ना ,मेरा किचन हेल्दी है, मैं ख़ाना बनाने के लिए एल्यूमीनियम ,नॉन स्टिक बर्तन काम में ना लेकर लोहे के बर्तन और स्टील के बर्तन काम में लेती हूं ।ये शरीर की सेहत के लिए अच्छे होते हैं।

लोहे के बर्तनों से हमारे अंदर की आयरन की कमी दूर हो जाती है ,ये हमारे हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखता है।सेहत भी अच्छी रहती है।

तभी बेल बजती है , मीता के बच्चे स्कूल से आ जाते हैं ,मम्मा हमने पूरा टिफिन का लिया , दोनों चहकते हुए बोले। क्या बात है स्टील के टिफिन और स्टील की ही बोतलें। हां , मैंने प्लास्टिक के बर्तन लगभग काम में लेने बंद कर दिये, इसमें हम जल्दबाजी में गर्म गर्म खाना पैक कर देते हैं , उससे प्लास्टिक पिघलकर खाने, पीने के साथ पेट में चला जाता है। बच्चों की सेहत खराब हो जाती है। ज्यादातर माँ और बच्चे प्लास्टिक के रंग, बिरंगे टिफिन और बोतल लेना पसंद करते हैं । ये प्लास्टिक कितना नुकसान करता है, कैंसर जैसी बीमारियां हो जाती है , मैं तो कहती हूं भारती तू भी सुधर जा,अपना और परिवार का ध्यान रखा कर।

तभी भारती की नजर बच्चों के खुले टिफिन पर गई ।

ओह !! तू बच्चों को कपड़े में लपेटकर खाना देती है , हां, मैंने कपड़े के छोटे-छोटे नेपकीन सिलवा रखें हैं । इसमें रोटी गर्म भी रहती है और नरम भी। मैं एल्यूमीनियम फॉइल का यूज नहीं करती,इससे गर्म खाने में एल्यूमीनियम पिघल कर समाहित हो जाता है।और अल्जाइमर नामक बीमारी होने का खतरा रहता है , और एल्यूमीनियम के बर्तन में पका खाना किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है। सबसे अच्छे तो सूती कपड़े के नेपकिन है जो सेहत बनायें रखते हैं,इन्हें अच्छे से धोकर सुखा भी सकते हैं।तुझे याद होगा पहले औरतें स्टील या पीतल के कटोरदान में कपड़े में रोटियां रखती थी,वो रोटियां कितनी अच्छी लगती थी। भारती ने मीता के किचन से, मीता से बहुत कुछ सीखा।

सखियों किचन में खाना बनें तो वो पौष्टिकता से भरपूर होना चाहिए,ना कि अनहेल्दी। बच्चों और परिवार को अच्छी आदतें सिखाना, अच्छा सेहत से भरपूर खाना खिलाना, गुणकारी पानी पिलाना हमारी जिम्मेदारी है।हम परम्परागत खान पान संबंधी आदतों को अपनाकर अपनी ,और परिवार की देखभाल कर सकते हैं । सखियों आज से आप लोग भी ये बातें छोटी मगर काम की को अपने दैनिक जीवन में अपनाएं और अपने परिवार को स्वस्थ बनाएं।अपने किचन को सुंदर के साथ साथ हेल्दी भी बनायें।

आवश्यक सुचना :: अभी बारिश का मौसम है इसलिऐ पानी की मटकी में दो लौंग, दो इलायची व ताम्रपत्र, जब सर्दी होगी तो स्वर्ण पत्र, गर्मी हो तो पुदीना पानी में डाल कर रखें! वो पानी पीये!