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शहीद दिनेश चन्द्र गुप्त जी : 88वा बलिदान दिवस

बंगाल के मुख्य पुलिस अधीक्षक (जेल), कर्नल एन. एस. सिम्पसन जेल में भारतीय कैदियों को यातनाएं देने के लिए कुख्यात था। सिंपसन नस्लवादी मानसिकता का व्यक्ति था। जब राजनीतिक कैदी भी उसका शिकार बनने लगे तो इन क्रांतिकारियों ने ठान लिया कि इसको सबक सिखाना बहुत जरूरी है। सिंपसन को भारतीयों से इस हद तक घृणा थी कि मानो भारतीय होना गाली हो। सभी क्रांतिकारी उसे सबक सिखाना चाहते थे। इसकी जिम्मेदारी तीन युवा दोस्त बिनॉय कृष्ण बासु, बादल गुप्ता और दिनेश चन्द्र गुप्त ने ली। उस वक्त कोलकाता के डलहौजी स्क्वायर पर राइटर्स बिल्डिंग ही सत्ता का केन्द्र था। सारे ब़ड़े अधिकारी वहीं बैठते थे। योजना बनी कि सिंपसन को राइटर्स बिल्डिंग में ही घुसकर मारने पर सहमति बनी, ताकि सबसे सेफ जोन में मारने से बाकी अधिकारियों में आतंक फैल जाए।

दिनेश चन्द्र गुप्त जी का जन्म 06 दिसंबर 1911 में ग्राम जोशोलोंग जिला मुंशीगंज (वर्तमान बंगलादेश) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात स्नातक शिक्षा प्राप्त करने हेतु ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं दिनेश गुप्ता ने सन 1928 में बंगाल क्रांतिकारी संघ, बंगाल वॉलीयंटर्स की सदस्यता ग्रहण की, (Bengal Volunteers-यह संगठन सुभास चन्द्र बोस ने 1928 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के मौके पर बनाया था) जो प्रारंभ में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का घटक दल थी, परंतु कालान्तर में कांग्रेस की नीतियों से खिन्न होकर स्वयं को अलग कर सशस्त्र क्रांति से जोड़ लिया एवं क्रूर अंग्रेज़ अधिकारियों को दंड देने की ठानी।

दिनेश चन्द्र गुप्त जी के बारे में कहा जाता है कि उनमें शस्त्र चलाने का गजब का हुनर था। वह स्थानीय नवयुवकों और अपने क्रांतिकारियों भाईयों को शस्त्र चलाना सिखाते थे। उनके शस्त्र चलाने का अंदाज इतना निराला था कि युवा क्रांतिकारी किसी और के पास जाना पसंद नहीं करते थे। बंगाल वॉलीयंटर्स में शामिल होने के बाद भी उन्होंने ट्रेनिंग का काम जारी रखा और तीन जिलों के DM डगलस (Duglous), बर्गे (Burge) और पेड्डी (Paddy) को जिन क्रांतिकारियों ने शूट किया था, उन्होंने हथियार चलाने की ट्रेनिंग दिनेश गुप्ता जी से ही ली थी, लेकिन सिम्पसन का केस मुश्किल था। तय किया गया कि राइटर्स बिल्डिंग में दिनेश गुप्ता को भी भेजा जाएगा।

08 दिसम्बर 1930 को दिनेश चंद गुप्ता, बादल गुप्ता और बिनोय के साथ यूरोपियन वेशभूषा धारण कर रायटर्स बिल्डिंग में घूसे और सिंपसन को मार गिराया। सिंपसन को 7 गोलियां मारी गईं, 3 गोली तो केवल सिर में मारी गईं। यह देख अंग्रेज़ अधिकारियों ने फायरिंग करनी प्रारंभ कर दी। अंग्रेज़ अधिकारी एवं अंग्रेज़ पुलिस के साथ तीनों क्रांतिकारियों ने जम कर संघर्ष किया और तवयनम(Twynam), प्रेन्टिस (Prentice) और नेल्सन नामक अंग्रेज़ अधिकारीयों को गंभीर रूप से घायल कर दिया।

पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर रखा था, परन्तु उन तीनों का लक्ष्य अंग्रेजों के हाथों बंदी होना नहीं था। अतः गोलियाँ समाप्त होने पर बादल ने साइनाइड खा कर अपने क्रांतिकारी जीवन का अंत किया। बिनोय और दिनेश ने अपनी ही कनपटी पर बंदूक रखकर गोली चला दी, परन्तु वे गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों को सरकारी चिकित्सालय में चिकित्सा के लिए रखा गया ताकि बचने के पश्चात उन्हें फाँसी पर चढाया जा सके, परन्तु बिनोय ने उनकी इस इच्छा को पूरा न होने दिया एवं 13 दिसंबर 1930 को सरकारी चिकित्सालय में वीरगति को प्राप्त हुए। परन्तु दिनेश गुप्ता इलाज़ के कारण बच गए और उन पर सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने व सरकारी अधिकारियों की हत्या का मामला चलाया गया। लेकिन जिस जज जिंगर ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी, उसे दिनेश चन्द्र गुप्त के साथी क्रांतिकारी कन्हाई लाल भट्टाचार्य ने गोली मार कर दिनेश की मौत का बदला भी ले लिया।

उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया, जहां से उन्होंने अपनी बहन अमिय सेन गुप्ता को काफी पत्र लिखे, जिनको बाद में एक किताब के तौर पर छापा गया, जिसका नाम था, ‘अमी सुभाष बोलछी’। 07 जुलाई 1931 को 19 वर्ष की आयु में फाँसी पर चढा दिया गया। दिनेश गुप्ता ने फाँसी से पहले जो पत्र लिखे जिसमें उन्होंने देश के युवकों को देश की स्वतंत्रता की राह पर जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। इन तीनों महानायकों के बलिदान ने बंगाल में क्रांतिकारियों में स्वतंत्रता की अग्नि को जलाये रखा एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात डलहौजी स्क्वायर (जहाँ रायटर्स बिल्डिंग स्थित थी) का नाम बदल कर बी.बी.डी.बाग (बादल बिनोय दिनेश बाग) रख दिया गया।