रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्नर के ताजा भाषा के जनगणना के आधार पर भारत मे 19500 भाषा और बोलियां मातृभाषा के तौर पर कही जाती है लेकिन फिर भी संविधान की 8वीं अनुसूची में मात्र 22 भाषाओ को ही 29 राज्यो और 7 केंद्र शाषित राज्यो द्वारा प्रयोग में लिया गया है अर्थात *कितनी मातृभाषायें और बोलियां को इन 22 भाषाओ के रूप में थोप दिया गया लेकिन फिर भी उन लोगो ने विरोध करना तो दूर एक ऐसी भाषा को पूर्ण सम्मान दिया जो परदेशी नही बल्कि उनकी मातृभाषाओं और बोली कि जननी देवभाषा संस्कृत की ही बेटी है*।
संस्कृत के जैसा गौरव तो किसी भाषा मे नही क्योंकि माँ माँ ही होती है लेकिन तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ से लेकर द्रविड़ भाषा वस्तुत क्यों अपनी ही बहन को स्वीकार करने में अपमानित महसूस कर रही है। निश्चित यदि इसका जवाब देने का अवसर तेलगु को मिला होता तो अपनी माँ संस्कृत की तरह वो भी उदारवादी एवं बहन को गले लगाने उठ खड़ी होती लेकिन कोई तो है जो नही चाह रहा कि यह बहने मिलजुलकर एक साथ रहे और इसके पीछे दक्षिण के दक्ष लोग नही वस्तुतः वो लोग है जो ईसायत, *वामपंथ और राजनीति के लिए देश को तोड़ना चाहते है, विभेद लाना चाहते है क्योंकि अंग्रजो ने जो फुट की विद्या इंडिया में डाली वो भारत मे भी आ गयी है वरना कौन एक विदेशी भाषा को समपर्क भाषा के रूप में स्वीकार कर लेता है* लेकिन स्वदेशी और भारतीय भाषा हिंदी का विरोध कर सके वो भी उसकी बहन भाषायों के नाम पर।
जरा सोचिए संविधान हर राज्य को अपनी भाषा चुनने का अधिकार देता है लेकिन एक व्यक्ति हो दक्षिण से ऊतर या उत्तर से दक्षिण चला जाये और पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व को चला जाये तो वह आखिर उनसे संवाद कैसे स्थापित करेगा। *हर भाषा को सिख सके तो बहुत अच्छे लेकिन मैकाले ने तो हमारे मस्तिक्ष को काल मे पहुंचा रखा है लेकिन फिर भी मैकाले का सामना करने में जैसे पूरे देश में स्थानीय भाषाएं लगी रही वहीं हिंदी ने इस पूरी जंग में खुद को फिर भी स्थापित रखा है जो आज भारत के लगभग हर राज्य में जाने और समझे जाने वाली भाषा है लेकिन मैकाले की अंग्रेजी को अगर हम संपर्क की भाषा माने और हिंदी से गुरेज रखे तो मानसिक गुलामी का इससे बड़ा उदाहरण भला क्या होगा*। दक्षिण में जो विरोध हो रहा है वो दक्षिण के भारतीय लोग नही कर रहे क्योंकि संस्कृति, एक धर्म, सभयता और संस्कार से भरे लोग जिनका मौलिक चिंतन विदेश के बड़े से बड़े वैज्ञानिकों को मात दे देता है वो *देश मे संपर्क भाषा के रूप में खड़ी हिंदी का विरोध नही कर सकते क्योंकि हिंदी अपनी बहन भाषायों को नष्ट नही करती वरण वो तो लोकसंस्कृति में उसे खड़े रखने में सहायक बनती है* इसलिए यह कार्य तो राजनीति से प्रेरित विदेशी षडयंत्रो का है जो नजर लगाकर देश की शांति और धर्म को तोड़ना चाहते है, वामपंथियों का है जो तेलगु भाषा की, तमिल की आड़ में , संस्कृति की आड़ में अंग्रेजी और धर्मांतरण को बढ़ाना चाहते है। *हिंदी अगर भाषाओ को नष्ट करने का कारण होती तो जिन राज्यो को हिंदी भाषी कहा जाता है उत्तर प्रदेश से लेकर झारखंड, उत्तराखंड से लेकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदश, हिमाचल आदि यह सब राज्यो की अपनी सैकड़ो क्षेत्रीय भाषाएं और बोलियां हैं लेकिन फिर भी हिंदी को स्वदेशी व्यापार से लेकर भारतीय संपर्क भाषा के ऊंचे स्थान को देखकर इन सबने हिंदी को आधिकारिक भाषा, संपर्क भाषा ही नहीं बनाया वस्तुतः वो इसे राष्ट्रभाषा बनाना चाहते है*।
इसलिए पूर्व से पश्चिम और कश्मीर से कन्याकुमारी तक जब एक भारत देश है, एक तिरंगा है, एक कानून है, एक संविधान है, एक सभ्यता है, एक राष्ट्र है तो एक राष्ट्र भाषा होने पर पर समस्या भला कहाँ हो सकती है क्योंकि *इस राष्ट्र की भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है और यही कारण है कि विदेशी अंग्रेजी और अंग्रेजियत हमें तोड़ रही है*।
https://www.google.com/amp/s/www.thehindubusinessline.com/news/variety/india-is-home-to-more-than-19500-mother-tongues/article24305725.ece/amp/
आपने बहुत तन्मयता से पढ़ा। आपका धन्यवाद
वन्दे मातरं… जय भारत… जय हिंद…
भाई विकास पाटनी
भाई अभिषेक सेठ
स्वदेशी एक प्रयास!