इंडिया नहीं भारत लाओ अभियान

नाम में क्या रखा है?
इंडिया नहीं भारत लाओ अभियान

हमारे बीच में कई लोग कहते है पूछते है , इंडिया को भारत बनाने कहने से क्या होगा?
भारत अपनी प्राचीनता गौरव की दर्शाता है और इंडिया , ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा दिए गए गुलामी की मानसिकता से भरे नाम को दर्शाता है!

इसलिए इंडिया की जगह भारत नाम से आवश्यकता है।

इंडिया में अंग्रेजो ने शराब के ठेके, पब, बार जैसे नग्नता, अश्लीलता, कत्लखाने, भोग विलास आदि दिए

जबकि भारत में पुरातन काल से ही मदिरा पान व मांस खाने की परंपरा असुरो की रही है और भोग विलास में भोगी लोग रहें हैं जिन्हें समाज हमेशा निम्न दृष्टि से ही देखता था , सम्मान भी नहीं करता था। भारतीय समाज ने हमेशा से ही त्यागी तरुओ के जीवन से परहित कुछ करना सीखा है।

भारत में शायद चालाकी नहीं थी, कुटिलता नहीं थी इसीलिए भारत कुटिल चाल वाले अंग्रेजो के क्रूरतापूर्ण कानून के अंतर्गत गुलाम हुआ। वो गोरे अंग्रेज़, भारत आए व्यापार करने के नाम पर , लेकिन अतिथि देवो भव वाले देश में लूटने के साम दाम दण्ड भेद के तरीके अपनाए, सबसे पहले भारत की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को तोड़ा और न्याय व्यवस्था को स्थानीय स्तर से हटाया , और केंद्रीकरण के नाम पर , आज की मैकाले अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के कारण बालक अपनी ही घर से , संस्कृति से , देश से हीन भावना से भरा हुआ है, क्युकी न तो उसे अपने पुरातन गौरव के बारे में पता है और वह इस वहम में है कि जो भी कुछ उत्तम है, वह अंग्रेजो द्वारा किया हुआ है, तो आज का बच्चा समाज के प्रभाव से और अंग्रेजी यूरोप और अमेरिका के आकर्षण में गांव से शहर और शहर से विदेश की तरफ बढ़ रहा है।

पढ़ाई ऐसी है कि गांव का पढ़ा बच्चा , उसकी पढ़ाई गांव के काम नहीं आ सकती है, और शहर में उस शहर के काम नहीं आ पा रही है।

अब प्रतिभा का पलायन होना स्वाभाविक है, तो गांव से शहर और शहर से विदेश की ओर जाना, खुद के परिवार का काम छोड़कर, नौकरी करना समाज में श्रेयस्कर कहा जाने लगा है, और वही मान्यता बन गई है।

नतीजा क्या हो रहा है सबको नौकरी तो मिलने से रही,

या तो पढ़ा लिखा, बेरोजगार लड़का कमाने के लिए चोरी भी कर सकता है, आधुनिक तरीको से डकैती डालने का प्रयास करेगा
क्युकी शारीरिक श्रम से पहले ही उसको दूर कर दिया गया है, मेहनत क्या है , पसीने की कमाई क्या होती है शायद उसको उतना नहीं मालूम जो नित्य परिश्रम करके किसान या देशप्रेमी सीमा पर जवान कमाता है।

इसलिए इंडिया नहीं, भारत लाना है। कुएं से निकली एक एक बाल्टी , नदी से भरे गए घड़े की एक एक बूंद का मूल्य बताना है।

पर्यावरण की ओर लौटने का प्रयास है भारत , स्वावलंबन होने का नाम भारत है। पेड़, जंगल, जमीन, नदी, तालाब पानी आदि पर पहला अधिकार मूल रूप से रह रहे स्थानीय लोगों का होता है, यही प्रकृति का नियम है ( rule of nature), किसी कॉरपोरेट कंपनी या राज घराने का अधिकार नहीं भारत को विदेशी कंपनियों की निर्भरता से मुक्त करने का काम है भारत में त्याग है, गरीबों और त्यागियों के लिए हृदय से खुले द्वारा है, भारत में अनुचित रूप से संचय नहीं क्युकी जो आज मिलता है वो कल भी मिलेगा, मौसम तय है, ऋतुएं तय है।

भारत और इंडिया की व्यवस्थाओं में ही बहुत बड़ा अंतर है
इंडिया अंग्रेजो की survival of the fittest ki baat krta hai,

और भारत survival of the weakest के लिए कार्य करता है, छोटी चीटियों को शक्कर देने से लेकर तुलसी और बड़े बड़े पीपल को पानी देने उनको कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए पूजना जैसे कार्य है आभार है प्रकृति का, कि उसने हमें जीने के लिए जगह दी, और उसका सदुपयोग करने के लिए अनुमति दी।

इंडिया में हर व्यक्ति गुलाम है या तो विदेशी भाषा का, विदेशी व्यवस्था का , समय का , मशीनों का आदि आदि , भुक्त है बाजार में, एकाकी जीवन में एकाकी परिवार की परम्परा, तनाव है, और रोग है , दवाएं तो खूब है लेकिन आरोग्य नहीं है।

लेकिन भारत में हर व्यक्ति मुक्त है, और संयुक्त है परिवार में , पारिवारिक व्यवस्था के कारण मानसिक तनाव कम है, जीवन का रस है तो रोग कम है, जीवनशैली में ही आरोग्य है, दवा भी अत्यन्त गंभीर समय के लिए है।

तो तय करिए कि आपको मुक्त रूप से संयुक्त परिवार वाला भारत चाहिए या फिर अंग्रेजों की गुलामी का दिया हुआ नाम वाला मानसिक गुलाम वाला इंडिया चाहिए?