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हरीकिशन तलवार : 88वाँ बलिदान दिवस

हरिकिशन तलवार का जन्म जनवरी 1908 में घालाडर गाँव जिला मरदान में हुआ था। उसके पिता का नाम गुरुदास मल तलवार था और वह बाल गंगाधर तिलक के “केसरी” के पाठक थे। जब खान अब्दुल गफ्फार खा ने खुदाई खिदमतगार या लाल कमीज वालो का आन्दोलन शुरू किया तो उसने अपने पुत्रो को उसमे भाग लेने को प्रेरित किया। सन 1930 में हरिकिशन एवं उसके छोटे भाई भगतराम ने सुभाषचंद्र बोस को भारत से बाहर जाने में सहायता की। उन्हें पकडकर पेशावर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। राजनितिक कैदियों की संख्या की अधिकता के कारण उनसे अंग्रेजी के एक फ़ार्म पर यह कहकर हस्ताक्षर लिए गये कि यह तुम्हारी रिहाई का आर्डर है जबकि यह प्रतिज्ञा थी कि वे भविष्य में कभी यह अपराध नही करेंगे। फ़ार्म अंग्रेजी में था इसलिए वे समझ नही सके। जब वे घर पहुचे तो उन्हें पिता के क्रोध का सामना करना पड़ा। पिता ने कहा कि उसने फार्म पर हस्ताक्षर करके परिवार की मर्यादा भंग की है। हरिकिशन ने संकल्प लिया कि वह इसका बदला ब्रिटिश सरकार से अवश्य लेगा।

यह निश्चय किया गया कि पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) के दीक्षांत समारोह (convocation) में पंजाब के गर्वनर को मार दिया जायेगा। अब इसके लिए एक तेज शूटर की जरूरत थी। हरी किशन तलवार के संकल्प के विषय में चमनलाल कपूर सम्पादक दैनिक प्रताप जानते थे। जब हरीकिशन से पूछा गया तो वह इसके लिए तैयार हो गया और उसके पिता गुरुदास बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसको नजदीक से गोली मारने का खुद ने अभ्यास करवाया। चमनलाल आजाद प्रताप दैनिक के सम्पादक ने लिखा।

सम्भवत: यह इतिहास में एकाकी उदाहरण है जिसमे पिता ने अपने पुत्र को देश की आजादी के लिए फांसी पर चढने को तैयार किया।

20 दिसम्बर 1930 को चमनलाल कपूर लाहौर पहुचे। “मिलाप” के दफ्तर में यह तय हुआ कि शूट करने के बाद भागने का प्रयत्न नही किया जाए जिससे निर्दोष लोगो की हत्या न हो। हरिकिशन को वसन्दाराम के घर में ठहराया गया जो बाद में मुखबिर बन गया। 23 दिसम्बर 1930 को हरिकिशन एक पुस्तक में छिपाकर पिस्तौल ले गया और मोहम्मद युसूफ के नाम के पास से सीनेट हॉल पहुंच गए। दीक्षांत समारोह की समाप्ति पर जब गर्वनर बाहर निकलने लगा तो हरि किशन ने उस पर गोली चला दी। उसने इस बात का ध्यान रखा कि डा.राधाकृष्णन घायल न हो गर्वनर घायल हुआ परन्तु बच गया। चमनसिंह नाम का एक सब इंस्पेक्टर उसको पकड़ने दौड़ा। अत: उसको भी हरिकिशन ने गोली मार दी। अन्य सिपाहियों द्वारा हरिकिशन को दबोच लिया गया। हरिकिशन को अनारकली पुलिस चौकी पर ले जाकर उसके साथियो के नाम बताने के लिए बहुत मारा पीटा गया पंरतु उसने अपने नाम पते के अलावा कुछ नही बताया। तब उसको अपराधियों को प्रताड़ित करने के लिए कुख्यात लाहौर किले में भेजा गया।

उसको नंगा करके सर्दी की रात में भूख-प्यास के साथ कई रात खड़ा रखा गया। उसको दिसम्बर की भयंकर ठंडी रात में बर्फ की शिलाओं पर सुलाया गया। उसके नाख़ून निकाल लिए गये और कांटेदार कुर्सी पर बिठाया गया। हरिकिशन ने इन सब जुल्मो को धैर्यपूर्वक सह लिया और किसी का नाम नही बताया। उसने इतना कहा कि वह घर से अकेला गर्वनर को मारने आया था। लाहौर कोर्ट में एक मजिस्ट्रेट आया। उसको भी उसने यही कहा और कहा कि यह गर्वनर जो भारतीय जनता पर तरह तरह के अत्याचार करता था को मारने आया था। मोहम्मद आसिफ अली , प्रसिद्ध कांग्रेसी एवं नामी वकील ने उसके बचाव की पैरवी की किन्तु सब व्यर्थ।

हरिकिशन ने उर्दू में यह बयान लिखकर दिया कि “ब्रिटिश शासन अत्याचारी है। उसकी सशस्त्र सेना ने निहत्थे पठानों पर 30 अप्रैल 1930 को गोली चलाई और अनेक पुरुष , महिलाओ और बच्चो को मार डाला। मैं जानता हूं कि मेरा भविष्य क्या है ? मुझे इस विषय में कोई गलतफहमी नही है। मेरे बलिदान से यदि स्वतंत्रता थोड़ी भे नजदीक आवे तो मुझे प्रसन्नता होगी। मैं हजार बार बलिदान होने को तैयार हूं और चाहता हूं कि मै पुन: जन्म लू और हर बार देश के लिए बलिदान हो जाऊ। मेरे मरने के बाद भी हजारो हरिकिशन पैदा होंगे। मै चाहता हूं कि ब्रिटिश सरकार अपने अत्याचारों को बंद करे और हमारे देश को छोड़ जाये।” उन्होंने इन्कलाब जिंदाबाद से अपना बयान समाप्त किया। 09 जून 1931 को मियावाली जेल में उसको फांसी दी गयी और उसका शव संबधियो को नही दिया गया।

हरीकिशन तलवार के पिता गुरुदासमल तलवार को भी 25 दिन बाद 4 जुलाई 1931 को फांसी दी गयी। पिता-पुत्र की यह शहादत स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अकेला उदाहरण है।