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स्‍वामी विवेकानंद जी : 117वीं पुण्यतिथि

  • जन्म: 12 जनवरी 1863
  • महासमाधि: 04 जुलाई 1902

स्वामी जी वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। इनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित शिकागो में 11 सितंबर 1893 को आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी जी के व्याख्यानों के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। भारत में, स्वामी जी को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। प्रेरणा के अपार स्रोत स्वामी जी की कही एक-एक बात हमें उर्जा से भर देती है। अपने अल्प जीवन में ही उन्होंने पूरे विश्व पर भारत और हिंदुत्व की गहरी छाप छोड़ दी। शिकागो में दिया गया उनका भाषण आज भी लोकप्रिय है और हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का आभास कराता है।

स्वामी जी द्वारा शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिए व्याख्यान के कुछ अंश :-

  1. अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
  2. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता (TOLERANCE) का विचार पूरब के देशों से फैला है।
  3. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।
  4. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल (ISRAEL) की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।
  5. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने पारसी (ZOROASTRIANISM) धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।